Monday 16 January 2012

चिलम , चिता और चिंतन

कुछ दिन पूर्व एक अंत्येष्टि में शामिल होने दिल्ली के निगम बोध घाट पर गया. हमेशा की तरह घाट पर चारों ओर धुआं , शव के जलने की गंध ,  जलती हुई  चिताएं,  बीच बीच  में रह रह कर  सुबकने की आवाजें  श्मशान का जीवंत  एहसास करा   रही   थी.   अपने सगे सम्बन्धियों से  सदा के लिए बिछुड़ने का दुःख वहां मौजूद हर एक की आँखों में देखा जा सकता था. तात्कालिक रूप से  प्रस्फुटित होने वाला श्मशान वैराग्य हमारी  अंतिम परिणति को भी हमें दिखा रहा था, जो कि अक्सर  शमशान से बाहर निकलते ही फुर्र हो जाता है .  वहां  के लिहाज से यह सब सामान्य सी बात थी. पर एक चिता को देख देख कर मै  कुछ कुछ आश्चर्य, रहस्य और जिज्ञासा के रोमांच में स्वयं को एक अनोखे चिंतन में डूबते उतराते हुए  महसूस कर रहा था.

उस जलती हुई चिता  के मुख की ओर एक बिलकुल  नई चिलम   रखी थी . चिलम के  ऊपर बाकायदा  जलता  हुआ अंगारा और उस पर जलती हुई तम्बाकू की गंध वातावरण को एक विचित्र 
आयाम   दे रही थी.  सभी उत्सुकता से उस चिता कि ओर देख रहे थे और अपने अपने तरीके से उसका अर्थ निकाल रहे थे. कुछ लोग तो वहीँ एक नए किस्म की वाद विवाद  प्रतियोगिता में जाने अनजाने शामिल हो गए थे.  मै अपने आपको ज्यादा देर तक नहीं रोक पाया और उस चिता को 
मुखाग्नि देने वाले के पास पहुँच गया.  औपचारिक शोक जताने के बाद मैंने उन सज्जन से चिता  के मुख की ओर जल रही चिलम का रहस्य जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि उनके पिताजी खांसी से परेशान थे. वह  उन्हें बीडी पीने से अक्सर मना करते  थे .  बीती  रात उनका अपने पिता से इसी बात  पर झगडा हो गया था और इस झगड़े में उन्होंने  अपने पिता की सभी  सिगरेट, बीडी, और चिलम  तोड़ दी .झगड़े के  बाद पूरी   रात भर उनके  परिवार  में तनाव और नींद की लुका छुपी चलती रही.   सुबह जब उन्होंने अपने पिताजी  को देखा तो वह  मौन पड़े थे. वह बोले, "हमारे पैरो तले की जमीन खिसक गई. पिताजी निष्प्राण हो चुके थे . वह अब इस दुनिया में नहीं रहे थे. पूरा परिवार स्वयं को कोसने लगा . चारों ओर कोहराम मच गया . अरे बीडी ही तो पी  रहे थे ... अपने आप पीते.  इससे उनकी खांसी ही तो बढ़ रही थी पर अब तो कुछ भी नहीं रहा . एक जीता जगाता रिश्ता ही ख़त्म हो गया.  अब हम किसे पिता कहेंगे.  अब कौन हमें डांटेगा, कौन हमें दुलारेगा , सब कुछ लुट गया", कहते कहते उनकी आँखों में आंसू छलक आये. मैं अवाक था ... थोड़ी देर कि चुप्पी के बाद मैंने सहानुभूति प्रकट करते हुए उन्हें समझाने का प्रयास किया और समझ गया की इस  जलती चिता के चिलम पीने का रहस्य क्या  था.

पर  वास्तव में यह समझाना क्या इतना आसान है? आखिर वे कौन से मनोवेग है , जो हमें समय रहते  जीवन की सच्चाइयों से रूबरू नहीं होने देते और जब सच सामने आता है , बहुत देर हो चुकी होती है    संबंधों और  संवेदनाओं  का संसार आज इतना नाजुक ,  और कच्ची डोर से बंधा  है कि   ज़रा से संवेग गलत तरीके से  प्रकट होते ही  या गलत तरीके से समझ लेते ही  रिश्तों में झंझावात आ जाता है और सब कुछ , यहाँ तक कि जीवन   समाप्त हो जाने में भी एक क्षण  नहीं लगता  है. लड़ते- झगड़ते -टूटते परिवार , बात बात पर दम तोड़ते सम्बन्ध, हमारे  बिखरते  संसार की झलक दिखलाते रहते है. पर हमारा भटका हुआ ...उलझा हुआ मन , झूठ से संपोषित अहंकार के कारण हमारी भलाई के लिए की गयी डांट व  ताड़ना को नहीं समझ पाता.  माँ बाप की छोटी छोटी बातों  से ही विचलित होते बच्चों के उद्दंड मनोभाव कहीं  न कहीं हमारे टूटते पारिवारिक परिवेश की गाथा हैं.  बालक और बूढ़े का मन  प्रायः एक  जैसा  ही  होता है , इन्हें  प्रेम से ही समझा जा सकता है. जब प्रेम उपजता है तो धीरज सीमा रहित  होकर हमारे जीवन में प्रवेश करता है. यही  अगाध धैर्य हमें जीवन की विकट परिस्थितियों में जीवन जीना सिखाता है. जब हम जीना सीखने लगते है तो इस के मूल में छिपी निश्छल  प्रेम कि अनंत उर्जस्विनी धारा ही   हमारा मनोबल ऊंचा बनाये रखने हमारी मदद कराती है.  प्रेम पूर्वक निर्वाह किये संबंधों में फिर न कोई शिकायत रहती है और न ही कोई मनोविकार रह पाता है  , फिर चाहे मौत  भी क्यों न हमसे हमारा प्रियतम  छीन ले हम उसके प्राणांत में भी धैर्य बनाते हुए सामान्य व्यवहार करते हैं. परिवार से बाहर निकल कर  शैक्षिक एवं सामाजिक विकास के केंद्र    विद्यालयों में टूटते गुरु -शिष्य सम्बन्ध हमारी शिक्षा प्रणाली की सच्ची किन्तु भयावह तस्वीर पेश कर रहे हैं.  सडकों पर बढ़ती रोड रेज की  घटनाएं,  स्वयं आगे बढ़ने की जुगत में दूसरों को धक्का देकर गिराने की जुगत हमें कहाँ ले जायेगी , यह अगर अब भी समझ  नहीं आया तो कब आयेगा यह चिंतन का विषय है. क्या हमारे मानवीय विकास कि धुरी शैक्षिक पाठ्यक्रम में पारिवारिक, सामजिक और  मानवीय संबंधों को समझने की  प्रायोगिक शिक्षा प्रारंभ  करने का कोई सार्थक प्रयास शुरू हो पायेगा ?     

3 comments:

  1. bahut marmik sawaal. blog kii dunia men aapka swagat hai.

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  2. धन्यवाद ! आपकी प्रतिक्रिया निश्चय ही मनोबल को ऊंचा रखने मे सहायक होगी.

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  3. इस चिंतन की थाह, अथाह है.

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